दोलित्र(Oscillators)
A.C. विद्युत् उत्पादन हेतु
प्रयोग किये जाने वाले प्रत्यावर्तक के द्वारा अधिकतम कुछ सौ हर्ट्ज कि आवृत्ति
पैदा की जा सकती है। जबकि इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों में कुछ किलो हर्ट्ज से हजारों
मेगा हर्ट्ज तक कि आवृत्ति की आवश्यकता होती है। इन उच्च आवृत्तियों के उत्पादन
हेतु ट्रांसिस्टर युक्त परिपथ प्रयोग किया जाता है जो ऑसिलेटर कहलाता है। यह परिपथ
वास्तव में उच्च आवृत्ति की विद्युत् धारा उत्पन्न नहीं करता बल्कि ट्रांसिस्टर
परिपथ में विद्यमान डी.सी. को ए.सी. में परिवर्तित कर देता है।
मौलिक आवश्यकतायें:-
1. एम्प्लीफायर परिपथ:- वास्तव में एम्प्लीफायर
परिपथ में धनात्मक पुनर्निवेश कि व्यवस्था करके ही उसे दोलित्र परिपथ में
परिवर्तित किया जाता है।
2. पुनर्निवेश परिपथ:- दोलित्र परिपथ के लिए पुनर्निवेश
एक मौलिक आवश्यकता है।
3. टैंक परिपथ:- दोलित्र परिपथ द्वारा
उत्पन्न दोलनों कि आवृत्ति निर्धारित करने वाला परिपथ टैंक परिपथ कहलाता है।
सामान्यतः यह एक श्रेणी अनुनाद परिपथ होता है।
पुनर्निवेश(Feedback):- किसी एम्पलीफायर आदि परिपथ
में निर्गत शक्ति के एक अंश को उसके निवेशी भाग में देना पुनर्निवेश या फीडबैक
कहलाता है। इस प्रक्रिया के फलस्वरूप परिपथ के निर्गत एवं निवेश एक दूसरे पर
निर्भर करने लगते है।
प्रकार (types):-
1.धनात्मक पुनर्निवेश:- जब पुनर्निवेश
वोल्टेज/धारा का स्वभाव इनपुट संकेत में जुड़ने का हो तो वह धनात्मक पुनर्निवेश
कहलाता है।
2. ऋणात्मक पुनर्निवेश:- जब पुनर्निवेश वोल्टेज/धारा का स्वभाव इनपुट संकेत के विपरीत हो तो वह ऋणात्मक पुनर्निवेश कहलाता है।
वोल्टेज पुनर्निवेश(Voltage Feedback):- ऋणात्मक पुनर्निवेश वोल्टेज(Vf) पैदा करने के लिए अमीटर परिपथ में एक प्रतिरोध(RE) लगाया जाता है और अमीटर के सिरे से एक संधारित्र (C2) के माध्यम से कला-मय वोल्टेज प्राप्त किया जाता है। कलैक्टर परिपथ में कोई लोड प्रतिरोधक संयोजित नही किया जाता। इस परिपथ में निर्गत वोल्टेज की कला, निवेश वोल्टेज की कला का अनुसरण करती है, इसलिए इसे एमीटर अनुसरक कहा जाता है।
धारा पुनर्निवेश(Current
Feedback):- यह परिपथ सामान्य CE प्रवर्द्धक के सामान होता है। इसमें पुनर्निवेश वोल्टेज(Vf), एमीटर के श्रेणी में एक
प्रतिरोध (RE) लगाकर पैदा किया
जाता है परन्तु उसे कलैक्टर के सिरे से संधारित्र (C2) के मध्य से प्राप्त किया
जाता है। इस प्रकार पुनर्निवेश वोल्टेज, निवेश वोल्टेज के विपरीत कला में होता है
क्योंकि पुनर्निवेश वोल्टेज का मान, निर्गत धरा के अनुक्रमानुपाती होता है। इसलिए
यह परिपथ, धारा पुनर्निवेश परिपथ कहलाता है।
दोलित्र के प्रकार (Types
of Oscillators):-
1. हार्टले दोलित्र, 2. कॉलपिट दोलित्र, 3. फेज-शिफ्ट RC दोलित्र,
4. वेन ब्रिज दोलित्र, 5. केलास दोलित्र, 6. मल्टीवाइब्रेटर
6. मल्टीवाइब्रेटर:- यह एक विशेष प्रकार का
ऑसिलेटर परिपथ है जो मूल आवृत्ति के साथ ही अनेक हॉरमोनिक आवृत्तियाँ भी पैदा करता
है। इसलिए इसका नाम मल्टीवाइब्रेटर अर्थात बहु आवृत्तियाँ उत्पादक परिपथ रखा गया
है।
किस्में(Types):- कार्य के आधार पर यह परिपथ
निम्न तीन प्रकार के होते है।
1. एस्टेबिल या फ्री-रनिंग मल्टीवाइब्रेटर:- इस परिपथ में कोई पूर्व-निर्धारित प्रचालन स्थिति नही होती है। दो में से कोई भी एक ट्रांसिस्टर पहले प्रचालन प्रारम्भ कर सकता है।
इसमें दो PNP ट्रांसिस्टर्स
Q1 व Q2 प्रयोग किये गये है। एक ट्रांसिस्टर
के कलैक्टर से दूसरे ट्रांसिस्टर के लिए बेस-बायस तैयार की जाती है। जब ट्रांसिस्टर
Q1 प्रचालन स्थिति में होता
है तो ट्रांसिस्टर Q2 कट-ऑफ स्थिति में
होता है। इसी प्रकार जब ट्रांसिस्टर Q2 प्रचालन स्थिति में होता है तो ट्रांसिस्टर Q1 कट-ऑफ स्थिति में आ जाता
है। इस प्रकार दोनों ट्रांसिस्टर्स Q1 व Q2 कि प्रचालन स्थितियाँ परिवर्तित होती रहती है।
2. मोनोस्टेबिल
मल्टीवाइब्रेटर:- इसमें संधारित्र C2 के स्थान पर एक
प्रतिरोध प्रयोग किया जाता है और ट्रांसिस्टर Q1 के बेस पर एक संधारित्र C3 के माध्यम से इनपुट सिंक
पल्स प्रदान की जाती है। इसके साथ ही ट्रांसिस्टर Q2 के कलैक्टर से एक संधारित्र
के माध्यम से आउटपुट प्राप्त किया जाता है। सिंक पल्स प्रदान करने पर ही परिपथ
दोलन प्रारम्भ करता है और पहले ट्रांसिस्टर Q1 प्रचलित होता है। इस परिपथ
कि एक प्रचालन स्थिति पूर्व-निर्धारित होने का कारण यह मोनोस्टेबिल वाइब्रेटर
कहलाता है।
3. बाइस्टेबिल
मल्टीवाइब्रेटर:- इस परिपथ में दो प्रचालन स्थितियॉ
होती है इसलिए यह बाइस्टेबिल परिपथ कहलाता है। इसमें पहले ट्रांसिस्टर Q1 अथवा ट्रांसिस्टर Q2 को प्रचालित किया जा सकता
है सिंक-पल्स प्रदान करने पर ट्रांसिस्टर कि प्रचालन स्थितियाँ परिवर्तित होने
लगती है
मल्टीवाइब्रेटर परिपथों का
उपयोग कम्प्यूटर्स में किया जाता है
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