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ड्रिल के प्रकार तथा दोष

 ड्रिल के साइज- ड्रिल चार मानक साइजों में मिलते है।

1. मिमी साइज ड्रिल(मीट्रिक ड्रिल)(Millimeter Size Drill)

2. इंच या फ्रैक्शन साइज ड्रिल(Inch or Fraction Size Drill)

3. लैटर साइज ड्रिल(Letter Size Drill)

4. नम्बर साइज ड्रिल(Number Size Drill)

1. मिमी साइज ड्रिल(मीट्रिक ड्रिल)(Millimeter Size Drill)-

     इसमें ड्रिल का साइज़ मिमी में मापा जाता है जो प्रायः 0.5 मिमी से 10 मीमी तक 0.1 मिमी के अंतराल से होता है। जैसे- 0.5, 0.6, 0.7, 0.8, ........9.8, 9.9, 10 मिमी। पुनः 10 मिमी से बड़े ड्रिल 0.5 मिमी के अंतराल से बढ़ते है। जैसे- 10, 10.5, 11, 11.5,.......... आदि।

2. इंच या फ्रैक्शन साइज ड्रिल(Inch or Fraction Size Drill)-

    इसमें सबसे छोटा ड्रिल 1/16 इंच का होता है उसके बाद 1/64 इंच के अंतराल पर बढ़ते हुए 1/2 इंच तक होता है। जैसे- 1/16, 5/64, 6/64, 7/64,..........31/64, 1/2 इंच।

3. लैटर साइज ड्रिल(Letter Size Drill)-

     इसमें ड्रिल का साइज अंग्रेजी के अक्षर ‘A’ से ‘Z’ तक द्वारा दर्शाया जाता है। A(=0.234 इंच) साइज का ड्रिल सबसे छोटा तथा Z(=0.413 इंच) साइज़ का ड्रिल सबसे बड़ा होता है।

4. नम्बर साइज ड्रिल(Number Size Drill)-

     इसमें ड्रिल का साइज ‘1’ नम्बर से ‘80’ नम्बर तक द्वारा दर्शाया जाता है। 1(=0.228 इंच) साइज का ड्रिल सबसे बड़ा तथा 80(=0.0135 इंच) साइज़ का ड्रिल सबसे छोटा होता है।

ड्रिल के दोष-

1. ड्रिल का अधिक गर्म होना- कर्तन गति अधिक होने से, फीड दर अधिक होने से, ड्रिल की कर्तन धार तेज न होने से, शीतलन उपयुक्त न होने से, पॉइंट कोण सही न होने से, क्लियरेंस कोण सही न होने से।

2. सुराख खुरदरा होना- फीड दर अधिक होने से, ड्रिल की कर्तन धार तेज न होने से, शीतलन उपयुक्त न होने से।

3. नाप से बड़ा सुराख़ होना- कर्तन कोर की असमान लम्बाई, कर्तन कोणों का असमान कोण, नोक को असमान रूप से पतला करना, ड्रिल मशीन के स्पिंडल का अपने केंद्र पर न चलाना, ड्रिल की नोक का अपने केंद्र पर न होना।

4. ड्रिल का टूटना- कर्तन गति अधिक होना, फीड दर अधिक होने से, कार्य को मजबूती से न पकड़ना, ड्रिल को सुचारू रूप से न पकड़ना, ड्रिल की कर्तन धार तेज न होना, नलिकाओं में छीलन फसना।

5. छीलन का असमान प्रवाह- कर्तन धार असमान होना, नोंक कोण ड्रिल के केंद्र में न होना।

ड्रिल के दोष

ड्रिल ग्राइंड- ड्रिल की धार को तेज करने के लिए ड्रिल को ग्राइंडर पर रगड़ा जाता है। इस प्रक्रिया में निम्न बिन्दुओं को ध्यान में रखना चाहिए।

1. ग्राइंडिंग व्हील के फेस को एक समान ड्रैस कर लेना चाहिए।

2. ड्रिल के फ्लूटेड भाग को बाएँ हाथ में और शैंक को दाएँ हाथ से मजबूती से पकड़ना चाहिए।

3. कटिंग एंगल के आधे कोण पर ड्रिल को झुकाते हुए लिप या कटिंग एज को धीरे से ग्राइंडिंग व्हील पर दबाना चाहिए।

4. आवश्यक लिप क्लीयरेंस के लिए शैंक को निचे की ओर झुकाकर रखना चाहिए।

5. दूसरा लिप भी इसी प्रकार ग्राइंड करना चाहिए।

ड्रिल ग्राइंड

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