रेक्टिफायर(Rectifier):-
ए.सी. को डी.सी. में बदलने वाली इलेक्ट्रॉनिक युक्ति रेक्टिफायर कहलाती है। तथा ए.सी. से डी.सी. में बदलने की क्रिया रेक्टिफिकेशन कहलाती है।
रेक्टिफायर परिपथ:- रेक्टिफायर परिपथ मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं।
1. हाफ वेव रेक्टिफायर, 2. फुल वेव रेक्टिफायर
1. हाफ वेव रेक्टिफायर(Half wave Rectifier)- इस रेक्टिफायर में केवल एक डायोड प्रयोग किया जाता है। इनपुट ए.सी. वोल्टेज आरोपित करने पर जब डायोड का एनोड फॉरवर्ड वायसिंग अवस्था में होता है, तो परिपथ में विद्युत धारा प्रवाहित होती है। परंतु जब एनोड रिवर्स वायसिंग में होता है तो विद्युत धारा प्रवाहित नहीं होती है। इस प्रकार प्रत्येक ए.सी. चक्र का ऋण अंश विलुप्त अर्थात रेक्टिफाई हो जाता है और आउटपुट में केवल धन अर्द्ध चक्र ही उपस्थित होते हैं। इसे पल्सेटिंग डी.सी. कहते हैं इसे शुद्ध डी.सी. में परिवर्तित करने की आवश्यकता होती है।
2. फुल वेव रेक्टिफायर(Full wave Rectifier)- इस रेक्टिफायर द्वारा पूर्ण
डी.सी. आउटपुट फुल वेव के रूप में प्राप्त होता है। फूल वेव रेक्टिफायर निम्न दो
प्रकार के होते हैं।
a). सेंटर टैप्ड रेक्टिफायर(Centre Tapped Rectifier)
b). ब्रिज रेक्टिफायर(Bridge Rectifier)
सेन्टर टैप्ड रेक्टिफायर में दो डायोड तथा ब्रिज रेक्टिफायर में चार डायोड
उपयोग में लाये जाते है।
a). सेंटर टैप्ड रेक्टिफायर(Centre Tapped Rectifier)- इस रेक्टिफायर में दो डायोड तथा एक मेन ट्रांसफॉर्मर प्रयोग किया जाता है, जिसकी सेकेण्डरी वाइण्डिंग में से एक मध्य संयोजक सिरा निकाला जाता है तथा मध्य सिरे को ग्राउण्ड कर दिया जाता है। इसे सेंटर टैप्ड ट्रांसफार्मर कहते हैं। प्रथम ए.सी. चक्र में D1 कार्य करता है तथा डी.सी. आउटपुट प्रदान करता है। द्वितीय ए.सी. चक्र में D2 कार्य करता है तथा डी.सी. आउटपुट प्रदान करता है। इस प्रकार ए.सी. इनपुट के प्रत्येक चक्र के दोनों अर्ध चक्रों के लिए डी.सी. आउटपुट प्राप्त होता है और इसलिए ही यह फुल वेब रेक्टिफायर कहलाता है।
b). ब्रिज रेक्टिफायर(Bridge Rectifier)- इस रेक्टिफायर में चार डायोड प्रयोग किए जाते हैं। इसमें किसी मध्य सिरा युक्त मेन ट्रांसफार्मर की आवश्यकता नही होती है। इसलिए इसका आकार तथा मुल्य कम होता है। यह परिपथ फुल वेव रेक्टिफिकेशन करता है। इस रेक्टिफायर में 4 डायोड D1 D2 D3 एवं D4 लगे होते हैं। जिनमें D2 तथा D4 ए.सी. इनपुट के ऋणात्मक अर्द्ध चक्र के लिए तथा D1 एवं D3 धनात्मक चक्र के लिए कार्य करते हैं तथा डी.सी. आउटपुट देते हैं।
रेक्टिफायर से सम्बन्धित पद-
1. अधिकतम धारा- किस धन अर्द्ध चक्र में विद्युत धारा का अधिकतम मान, अधिकतम धारा(Im) कहलाता है।
2. दिष्ट धारा- IDC = 2Im ∕π = 0.636 Im
3. आर.एम.एस. धारा- Irms = 0.707 Im (Im = Vm ∕ RL)
4. DC आउटपुट वोल्टेज- शून्य तथा अधिकतम वोल्टेज के औसत को D.C. आउटपुट
वोल्टेज कहते है
हाफ वेव के लिए,
Vav = VDC = Vm
∕π = 0.318 Vm
फुल वेव के लिए,
Vav = VDC =
2Vm ∕π = 0.636 Vm
जहां, Vm = अधिकतम वोल्टेज
Vav = औसत
वोल्टेज
VDC = D.C. वोल्टेज
5. पीक इन्वर्स वोल्टेज- रेक्टिफायर की चालन रहित अवस्था में एनोड एवं कैथोड
के मध्य विकसित अधिकतम बोल्टेज, पीक इन्वर्स बोल्टेज कहलाती है
6. लोड धारा- किसी रेक्टिफायर
द्वारा लोड को प्रदान की जाने वाली अधिकतम धारा, लोड धारा कहलाती है
IL < Ipeak
7. पीक प्लेट धारा- किसी रेक्टिफायर में से प्रवाहित होने वाली अधिकतम धारा, पीक प्लेट
धारा कहलाती है
8. रिपिल आवृत्ति- किसी रेक्टिफायर से प्राप्त आउटपुट धारा घटते-बढ़ते स्वभाव वाली होती
है अतः आउटपुट में उपलब्ध पल्सेज की आवृत्ति, रेक्टिफायर की रिपिल आवृत्ति कहलाती
है।
हाफ वेव के लिए,
रिपिल आवृत्ति = इनपुट
ए.सी. आवृत्ति
फुल वेव के लिए,
रिपिल आवृत्ति = 2 X इनपुट
ए.सी. आवृत्ति
9. रेक्टिफायर दक्षता- किसी रेक्टिफायर से प्राप्त आउटपुट D.C. शक्ति(PDC) तथा आरोपित A.C. शक्ति(PAC) का अनुपात रेक्टिफायर दक्षता कहलाती है
η = PDC×100 ∕ PAC
फुल वेव रेक्टिफायर की दक्षता, हाफ वेव रेक्टिफायर की दक्षता की दो
गुनी होती है
सामान्यता हाफ वेव रेक्टिफायर की दक्षता 40.6% एवं फुल वेव रेक्टिफायर की
दक्षता 81.2% होता
है
10. रिपिल फैक्टर- रेक्टिफायर परिपथ के आउटपुट टर्मिनल पर प्राप्त ए.सी. वोल्टेज या
धारा के आर.एम.एस. मान एवं डी.सी. वोल्टेज या धारा के मान के अनुपात को रिपिल
फैक्टर कहते हैं
Kr = Erms /EDC
= Irms /IDC
फिल्टर(Filter):- फिल्टर परिपथ वह युक्ति है जो किसी रेक्टिफायर के आउटपुट से प्राप्त
पल्सेटिंग डी.सी. को स्थिर डी.सी. में परिवर्तित करता है
फिल्टर के प्रकार-
1. कैपेसिटर इनपुट फिल्टर-
लाभ- यह फिल्टर सस्ता होता है। यह आकार में छोटा एवं वजन में हल्का होता
है। इसका प्रयोग हाफ वेव एवं फुल वेव रेक्टिफायर दोनों में किया जा सकता है।
हानि- जटिल परिपथों में इसका प्रयोग नहीं किया जाता है। इसका प्रयोग
सामान्यतः केवल उच्च वोल्टेज एवं निम्न धारा सप्लाई के लिए होता है।
2. श्रेणी इण्डक्टर फिल्टर-
लाभ- यह धारा में अचानक हुए परिवर्तन को स्थिरता प्रदान करता है। उच्च
लोड धारा पर यह फिल्टर प्रक्रम में सुधार करता है।
हानि- प्रेरक में बोल्टेज ड्रॉप के करण आउटपुट कम वोल्टेज प्राप्त होती है।
या फिल्टर परिपथ जटिल एवं आकार में बड़ा होता है। यह हाफ वेव रेक्टिफायर के लिए
उपयुक्त नहीं होता है
3. चोक इनपुट L-C फिल्टर-
लाभ- यह प्राप्त आउटपुट में रिपिल को कम करता है। इसका फिल्टर प्रक्रम लोड
धारा पर निर्भर नही करता है।
हानि- आउटपुट पर कम वोल्टेज प्राप्त होता है यह जटिल और आकार में बड़ा होता
है। यह हाफ वेव रेक्टिफायर के लिए उपयुक्त नही होता है।
4. पाई फिल्टर-
लाभ- इसके द्वारा आउटपुट पर उच्च वोल्टेज प्राप्त होता है। इससे प्राप्त आउटपुट
रिपिल रहित होता है। यह हाफ वेव व फुल वेव दोनों रेक्टिफायर के लिए उपयुक्त होता
है।
हानि- इलेक्ट्रोलाइट कैपेसिटर के करण यह आकार में बड़ा एवं अपेक्षाकृत भारी
होता है। इसका मूल्य अधिक होता है।
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