बेसिक इलेक्ट्रॉनिक्स(Basic Electronics):-
विज्ञान की वह शाखा जिसमें बाहरी बलों के प्रभाव के अन्तर्गत इलेक्ट्रॉन तथा अन्य आवेश वाहकों के गुणों, व्यवहार एवं अनुप्रयोगों का अध्ययन किया जाता है उसे इलेक्ट्रॉनिक्स कहा जाता है। इसकी उत्पत्ति इलेक्ट्रॉन से हुई है।
“सम्पूर्ण इलेक्ट्रॉनिक का आधार अर्द्धचालक पदार्थ है। अर्द्धचालक
पदार्थों के द्वारा ही इलेक्ट्रॉनिक युक्तियां जैसे डायोड, ट्रांजिस्टर, इत्यादि
का निर्माण किया जाता है।”
वैद्युतिक अवयव:-
यह दो प्रकार के होते हैं।
1. निष्क्रिय अवयव- ऐसे अवयव जो ओम और किरचाफ के नियमों का पालन
करते हैं, उसे निष्क्रिय अवयव कहते हैं। जैसे- प्रतिरोध, संधारित, प्रेरक आदि। ये
अवयव ऊर्जा स्टोर कर सकते हैं परंतु बोल्टेज या धारा के रूप में उर्जा उत्पन्न
नहीं कर सकते है। ये सिग्नल की शक्ति में वृद्धि भी नहीं कर सकते। निष्क्रिय अवयव
का व्यवहार रैखिक होता है।
2. सक्रिय अवयव- ऐसे अवयव जो ओह्म और किरचाफ के नियमों का पालन
नहीं करते सक्रिय अवयव कहलाते हैं। जैसे- डायोड, ट्रांजिस्टर, थायरिस्टर आदि। इनके
द्वारा वोल्टेज और शक्ति का प्रवर्धन किया जा सकता है। ये अवयव वोल्टेज एवं धारा
के रूप में ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। इनका व्यवहार अरैखिक होता है।
वैद्युतिक पदार्थों का वर्गीकरण:- वैद्युतिक पदार्थों को निम्न तीन वर्गों में बांटा
गया है
1. चालक(Conductor)- जिन पदार्थों में
विद्युत धारा सुगमता से प्रवाहित होती है उसे चालक पदार्थ कहते हैं। जैसे- चाँदी,
ताँबा, एल्युमिनियम आदि। किसी पदार्थ की चालकता उसमें उपस्थित मुक्त इलेक्ट्रॉनों
की संख्या पर निर्भर करता है। चालक परमाणु के अंतिम कक्षा में केवल 1, 2 या 3
इलेक्ट्रान अथवा 5, 6 या 7 इलेक्ट्रॉन होते हैं अर्थात अंतिम कक्षा
अपूर्ण होता है ।
2. अचालक(Insulator)- जिन पदार्थों में विद्युत धारा प्रवाहित नहीं
होती है वह अचालक कहलाते हैं जैसे- रबर, कागज, चीनी मिट्टी आदि। इन पदार्थों में
मुक्त इलेक्ट्रॉन नहीं होते हैं।
3. अर्द्धचालक(Semi Conductor)- जिन पदार्थों की चालकता का स्तर चालकों एवं अचालकों के मध्य होता है वे अर्द्धचालक कहलाते हैं। जैसे कार्बन, जर्मेनियम, सिलिकॉन आदि। इन पदार्थों के परमाणुओं के अंतिम कक्षा में प्रायः चार इलेक्ट्रान होते हैं।
नोट-
1. चालक का ताप बढ़ाने पर उसका प्रतिरोध या प्रतिरोधकता बढ़ती है।
2. अर्द्धचालक का ताप बढ़ाने पर उसकी प्रतिरोधकता तेजी से घटती है।
3. अर्द्धचालकों का प्रतिरोध ताप गुणांक ऋणात्मक होता है।
4. किसी अर्द्धचालक में थोड़ी सी उपयुक्त अशुद्धि मिला देने पर उसकी
विद्युत चालकता को बहुत अधिक बढ़ाया जा सकता है।
5. शुद्ध अवस्था में परम शून्य ताप पर जर्मेनियम तथा सिलिकॉन अचालक के समान व्यवहार करते हैं अर्थात उस ताप पर स्वतंत्र इलेक्ट्रान नहीं रहते हैं।
अर्द्धचालकों के प्रकार:- अर्धचालक दो प्रकार के होते हैं।
1. इन्ट्रिन्सिक अर्द्धचालक(Intrinsic Semiconductor),
2. एक्सट्रिन्सिक अर्द्धचालक(Extrinsic Semiconductor)
1. इन्ट्रिन्सिक अर्द्धचालक(Intrinsic Semiconductor)- शुद्ध अर्द्धचालक को
इन्ट्रिन्सिक अर्द्धचालक कहते हैं। सिलिकॉन एवं जर्मेनियम शुद्ध अर्धचालक होते हैं।
2. एक्सट्रिन्सिक अर्द्धचालक(Extrinsic Semiconductor)- शुद्ध अर्धचालक
पदार्थों में किसी उचित पदार्थ को अशुद्धि के रूप में मिलाकर उनकी चालकता में
वृद्धि कर दी जाती है। ऐसे अशुद्धि युक्त अर्धचालक एक्सट्रिन्सिक अर्द्धचालक
कहलाते हैं।
डोपिंग(Doping):-
शुद्ध अर्द्धचालकों में अशुद्धि मिलाने की प्रक्रिया डोपिंग कहलाती है। डोपिंग के आधार पर एक्सट्रिन्सिक अर्द्धचालको को निम्न दो भागों में वर्गीकृत किया गया है। 1. P-टाइप अर्द्धचालक, 2. n-टाइप अर्द्धचालक
1. P-टाइप अर्धचालक(n-Type Semiconductor):- जब शुद्ध अर्द्धचालक में त्रिसंयोजी अशुद्धि(जैसे- इण्डियम, गैलियम आदि) मिला देते हैं तो P-टाइप सेमीकण्डक्टर का निर्माण होता है।
यदि इण्डियम अथवा गैलियम आदि में से किसी एक तत्व की अल्प मात्रा जर्मेनियम अथवा सिलिकॉन में प्रवेश करा दी जाए तो प्रत्येक इण्डियम अथवा गैलियम परमाणु के लिए एक इलेक्ट्रॉन की कमी उत्पन्न हो जाती है, जो होल(hole) आथवा कोटर कहलाती है
जर्मेनियम की संरचना जालीय होती है। जिसमें प्रत्येक जर्मेनियम परमाणु चार अन्य जर्मेनियम परमाणुओं के साथ सह-संयोजी बंध स्थापित करता है। जब इस जालीय संरचना में एक त्रिसंयोजी इण्डियम प्रवेश कर जाता है तो उसकी वाह्य कक्षा में केवल तीन इलेक्ट्रॉन विद्यमान होने के कारण एक इलेक्ट्रॉन की कमी हो जाती है, अर्थात होल(Hole) उत्पन्न हो जाते है। इस होल का आवेश धनात्मक होता है।
चित्र में P टाइप के अर्द्धचालक का ऊर्जा स्तर आरेख दर्शाया गया है, जो EC चालन बैण्ड, EV संयोजी बैण्ड, Eg बैण्ड अन्तराल तथा Ea ग्राही ऊर्जा स्तर को प्रदर्शित करता है।
2. n-टाइप अर्धचालक(n-Type Semiconductor):- जब शुद्ध अर्द्धचालकों में पंच संयोजी अशुद्धि मिलाया जाता है तो n-टाइप अर्द्धचालक का निर्माण होता है।
आर्सेनिक तथा एन्टीमनी पंचसंयोजी तत्व होते हैं। यदि इनमें से किसी एक तत्व की अल्प मात्रा जर्मेनियम अथवा सिलिकॉन में प्रवेश करा दि जाय तो प्रत्येक आर्सेनिक अथवा एन्टीमनी परमाणु का एक इलेक्ट्रॉन जालीय संरचना में मुक्त हो जाता है जो मुक्त इलेक्ट्रॉन कहलाता है।
जब जर्मेनियम की जालीय संरचना में एक पंच संयोजी आर्सेनिक प्रवेश कर जाता है तो
उसकी वह्यतम कक्षा में 5 इलेक्ट्रॉन विद्यमान
होने के कारण एक इलेक्ट्रॉन को जलीय संरचना में स्थान नहीं मिल पाता है और वह
मुक्त हो जाता है।
n-टाइप अर्द्धचालक
में मिश्रित अशुद्धि दाता अथवा डोनर अशुद्धि कहलाती है। जिसका ऊर्जा स्तर अर्थात डोनर
ऊर्जा स्तर Ed, चालन बैण्ड के ठीक नीचे स्थित होता है।
P-N जक्शन:- जब किसी P-टाइप तथा n-टाइप क्रिस्टल को उष्मीय प्रक्रिया द्वारा संयुक्त
किया जाता है, तो प्राप्त जक्शन P-N जंक्शन कहलाता है। इसको निम्न दो विधियों
द्वारा तैयार किया जाता है।
1. ग्राउन P-N जक्शन- इस प्रकार के जक्शन को बनाने के लिए जर्मेनियम के क्रिस्टल में पहले एक प्रकार की अशुद्धि मिलाई जाती है, तथा अशुद्धि मिलाने के बाद दूसरे प्रकार की अशुद्धि मिला दी जाती है, जिससे क्रिस्टल का एक भाग एक प्रकार की अशुद्धि से तथा दूसरा भाग दूसरे प्रकार की अशुद्धि से युक्त हो जाता है। ग्राउन जक्शन में P-भाग में होल तथा n-भाग में इलेक्ट्रॉन होने के कारण धारा प्रवाहित हो सकती है।
2. फ्यूज्ड P-N जक्शन- इस प्रकार के जक्शनको बनाने के लिए n-type जर्मेनियम वेफर की सतह पर इण्डियम की बहुत शूक्ष्म मात्रा रखकर क्रिस्टल
को गर्म किया जाता है। जिससे इण्डियम, जर्मेनियम सतह के नीचे कुछ दूरी पर वितरित
होकर एक पतली परत के रूप में फैल जाती है। इस प्रकार सतह के नीचे एक पतली परत p-type
जर्मेनियम की बन जाती है तथा क्रिस्टल का शेष भाग n-टाइप जर्मेनियम
ही रहता है, इस प्रकार p-type क्षेत्र के मध्य P-N जक्शन बन
जाता है।
आवेश वाहको का स्थानान्तरण उच्च सान्द्रता से कम सान्द्रता वाले क्षेत्र की ओर होता है इस प्रक्रिया को विसरण कहते हैं इस प्रक्रिया द्वारा P-N जक्शन में जो धारा प्रवाहित होती है वह विसरण धारा कहलाती है।
विसरण प्रक्रिया के
कारण n-टाइप अर्द्धचालक के इलेक्ट्रॉन जक्शन के निकट P-टाइप अर्द्धचालक में
उपस्थित होल के साथ संयोजित हो जाते हैं। इसी प्रकार P-टाइप अर्द्धचालक के होल n-टाइप
अर्द्धचालक के जक्शन के निकटवर्ती इलेक्ट्रॉन के साथ संयोजित हो जाते हैं। परिणाम
स्वरूप P-टाइप अर्द्धचालक में जक्शन के निकट ऋणआवेश तथा n-टाइप अर्द्धचालक में जक्शन
के निकट धन आवेश एकत्रित हो जाते हैं। जक्शन के निकट इन स्थिर आयनों के एकत्रित एकत्रित
होने के कारण आवेश वाहकों का स्थानान्तरण बाधित हो जाता है और P-N जक्शन की
साम्यावस्था प्राप्त हो जाती है।
अवक्षय क्षेत्र(Depletion Region):- इलेक्ट्रॉन तथा होल की विसरण प्रक्रिया के पश्चात P-N जक्शन के निकट बना वह क्षेत्र जिसमें स्थिर इलेक्ट्रॉन तथा होल उपस्थित होते हैं, अवश्य क्षेत्र कहलाता है।
विभव प्राचीर(Potential
Barrier):- इलेक्ट्रॉन-होल के विसरण के कारण P-N जक्शन पर एक विभव उत्पन्न हो
जाता है, जिसे विभव प्राचीर कहते हैं। जर्मेनियम के लिए यह विभव VB = 0.3 वोल्ट तथा सिलिकॉन के लिए यह विभव VB = 0.3
वोल्ट होता है।
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