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दिष्ट धारा सिद्धान्त(D.C. Theory)

 

ओह्म का नियम(Ohm’s Law):- नियत ताप पर किसी बन्द डी.सी. परिपथ में बहने वाली  विद्युत् धारा(I) का मान उसके सिरों के बीच विभवान्तर(V) के अनुक्रमानुपाती होती है

                    अर्थात          V  I

                                        V = R.I = I.R      (R = नियतांक)

प्रतिरोध का नियम:- किसी चालक का प्रतिरोध निम्न कारकों पर निर्भर होता है

1. किसी चालक का प्रतिरोध उसके लम्बाई(l) के अनुक्रमानुपाती होता है

2. किसी चालक का प्रतिरोध उसकी क्रॉस सेक्सन के क्षेत्रफल(a) के व्युत्क्रमानुपाती होता है

3. किसी चालक का प्रतिरोध जिस पदार्थ का बना होता है उस पदार्थ के प्रतिरोधकता(ρ) के अनुक्रमानुपाती होता है

अर्थात                                      R =  ρ.l/a

प्रतिरोधकता या विशिष्ट प्रतिरोध:- प्रत्येक धातु अपने संरचना के अनुसार अपने अन्दर से प्रवाहित होने वाली विद्युत् धारा का विरोध करती है विरोध करने का यह गुण उस धातु का प्रतिरोधकता कहलाता है

प्रतिरोधकता या विशिष्ट प्रतिरोध का मात्रक:-

     C.G.S. प्रणाली में,   

                              ρ =  R.a/l = ओह्म.सेमी2/ सेमी = ओह्म.सेमी

M.K.S. प्रणाली में प्रतिरोधकता का मात्रक ओह्म.मी होगा

चालकता(Conductance):- चालकता किसी पदार्थ का वह गुण है जिसके कारण पदार्थ अपने अन्दर से विद्युत् धारा को प्रवाहित होने देता है यह प्रतिरोध का विपरीत प्रभाव वाला होता है अतः  चालकता(G) = 1/R

इसी प्रकार विशिष्ट चालकता भी विशिष्ट प्रतिरोध का विपरीत प्रभाव वाला होता है     

अतः                  चालकता(σ) = 1/ρ

विद्युत् उष्मीय ऊर्जा(Electro-Thermal Energy):-

जूल का नियम:- जब किसी चालक में विद्युत् धारा प्रवाहित की जाती है तो वह चालक गर्म हो जाता है चालक में उत्पन्न यह ऊष्मा विद्युत् धारा के वर्ग तथा प्रतिरोध व समय के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती होता है

उत्पन्न ऊष्मा(H) = I2.R.t जूल (1 कैलोरी = 4.18 जूल)

ऊष्मा की मात्रा(H) = m.s.Δt

                         m = पदार्थ का द्रव्यमान

                          s = पदार्थ की विशिष्ट ऊष्मा

                        Δt = तापमान परिवर्तन

किरचाँफ का नियम(Kirchoff’s Laws):-

किरचाँफ का दो नियम है,     1. विद्युत् धारा का नियम, 2. वोल्टेज का नियम

1. विद्युत् धारा का नियम- किसी बंद परिपथ में चालको के किसी संगम पर विद्युत् धाराओं का बीजगणितीय योग शून्य होता है अर्थात (I = 0)

किरचाँफ का नियम

2. वोल्टेज का नियम- किसी बंद परिपथ में आरोपित वि०वा० बलों का बीजगणितीय योग परिपथ में लगे सभी उपकरणों के वोल्टेज-ड्रॉपों के बीजीय योग के बराबर होता है, अर्थात (E = E I.R)

किरचाँफ का नियम

व्हीट स्टोन ब्रिज(Wheat Stone Bridge):- इसे पोस्ट ऑफिस बॉक्स के नाम से भी जाना जाता है इसका उपयोग तीन ज्ञात प्रतिरोध की सहायता से किसी अज्ञात प्रतिरोध का मान ज्ञात करने के लिये किया जाता है

इसमें चारो (तीनो ज्ञात तथा एक अज्ञात) प्रतिरोधों को चित्र की भांति एक गैल्वेनोमीटर के साथ समायोजित किया जाता है यहाँ पर प्रतिरोध P, Q व S ज्ञात प्रतिरोध तथा R अज्ञात प्रतिरोध है प्रतिरोध R का मान पहले शून्य करके जब धारा प्रवाहित किया जाता है तो गैल्वेनोमीटर में भी कुछ धारा प्रवाहित होती है फिर प्रतिरोध R का मान धीरे-धीरे इस प्रकार बढ़ाया जाता है कि गैल्वेनोमीटर में धारा प्रवाह शून्य हो जाये इस स्थिति में,

        P/Q = R/S           =>             R = P.S /Q

व्हीट स्टोन ब्रिज

प्रतिरोधक(Resistor):- प्रत्येक पदार्थ अपने अन्दर से बहने वाली धारा का विरोध करता है अतः प्रत्येक पदार्थ प्रतिरोधक की तरह कार्य करता है इलेक्ट्रॉनिक परिपथो में प्रतिरोधक का बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य होता है प्रतिरोधक मुख्यतः कार्बन के ही बनाये जाते है परन्तु कभी-कभी तार के भी प्रतिरोधक उपयोग में लाये जाते है प्रतिरोधक नियत मान और परिवर्ती मान दोनों प्रकार के भी बनाये जाते है ताप के प्रभाव से भी प्रतिरोध का मान घटता तथा बढ़ता है

प्रतिरोध का मान:-  प्रतिरोध के ऊपर विभिन्न रंगों की चार पट्टियाँ बनाई जाती है जिसमे पहली पट्टी प्रतिरोध के मान के पहले अंक को, दूसरी पट्टी प्रतिरोध के मान के दूसरे अंक को, तीसरी पट्टी प्रतिरोध के मान के गुणक को तथा चौथी पट्टी प्रतिरोध के सहनशीलता को व्यक्त करती है रंग की तालिका निचे दी गयी है

रंग

पहली पट्टी

दूसरी पट्टी

तीसरी पट्टी

चौथी पट्टी

काला

0

0

1

-

भूरा

1

1

10

1%

लाल

2

2

100

2%

नारंगी

3

3

1000

3%

पीला

4

4

10000

4%

हरा

5

5

100000

 

नीला

6

6

1000000

 

बैंगनी

7

7

 

 

सलेटी

8

8

 

 

सफेद

9

9

 

5%

सुनहरी

 

 

 

10%

चाँदी

 

 

 

20%

प्रतिरोधको का संयोजन:- जब किसी विशेष मान का प्रतिरोध उपलब्ध नही होता है तो दो या अधिक प्रतिरोधों को मिलाकर आवश्यक मान का प्रतिरोधक प्राप्त किया जाता है

1. श्रेणी संयोजन- इस विधि में सभी प्रतिरोधों में एक ही मान का विद्युत् धारा प्रवाहित होता है और प्रत्येक प्रतिरोधो के विभवान्तरों का योग लगाये गये विभवान्तर के बराबर होता है 

अतः                     V = V1+ V2+ V3+......

                            IR = IR1+ IR2+ IR3+..........

                             R = R1+ R2+ R3+..........

Series Connection

1. समान्तर संयोजन- इस विधि में सभी प्रतिरोधों में अलग-अलग मान का विद्युत् धारा प्रवाहित होता है सभी प्रतिरोधों में प्रवाहित विद्युत् धाराओं का योग परिपथ के विद्युत् धारा के बराबर होता है और प्रत्येक प्रतिरोध का विभवान्तर लगाये गये विभवान्तर के बराबर होता है 

                                अतः I = I1+ I2+ I3+..........

                                 V/R = V/R1+ V/R2+ V/R3+..........

                                  1/R = 1/R1+ 1/R2+ 1/R3+..........

 Parallel Connection of Resistance

 

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