डी. सी. मोटर:- विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक
ऊर्जा में बदलने वाले मशीन को मोटर कहते है जिस मोटर में डी. सी. विद्युत ऊर्जा का उपयोग किया जाता है
उसे डी. सी. मोटर तथा जिसमे ए. सी. विद्युत् ऊर्जा उपयोग किया जाता है उसे ए. सी.
मोटर कहते है
डी. सी. मोटर का सिद्धान्त:- जब किसी कुंडली में विद्युत
धारा प्रवाहित की जाती है तो कुन्डली में विद्युत् चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित हो
जाता है जब इस कुंडली को किसी अन्य चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो दो
चुम्बकीय क्षेत्र आपस में मिलकर एक घुमाव बल पैदा करते है।
यह फ्लैमिंग का बायाँ-हस्त
नियम पर कार्य करता है इस नियम के अनुसार “यदि बाएँ हाथ कि प्रथम दो उँगलियों तथा
अँगूठे को परस्पर समकोण पर इस प्रकार रखा जाय कि पहली उँगली चुम्बकीय क्षेत्र कि
दिशा, दूसरी उँगली चालक में विद्युत् धारा प्रवाह कि दिशा को इंगित करे तो अँगूठा चालक
की घुमाव दिशा को इंगित करेगा।”
डी. सी. मोटर के भाग:- डी.सी. जनित्र तथा मोटर
दोनों एक ही होते है बस अंतर यह है कि डी. सी. जनित्र में अस्थाई चुम्बक का प्रयोग
किया जाता है जबकि डी.सी. मोटर में स्थाई चुम्बक का प्रयोग किया जाता है। डी. सी.
जनित्र को डी.सी. मोटर कि तरह उपयोग किया जा सकता है इसके मुख्य भाग निम्नलिखित
है- 1. योक, 2. चुम्बकीय क्षेत्र, 3. आर्मेचर, 4. कम्यूटेटर आदि
बैक e.m.f. :- मोटर में जब आर्मेचर घूमना शुरू करता है तो यह चुम्बकीय फ्लक्स का छेदन करने लगता है जिससे यह जनित्र कि तरह कार्य करने लगता है फलस्वरूप आर्मेचर में वि.वा.बल पैदा हो जाता है जो आर्मेचर के वि.वा.बल का विरोध करता है इसलिए इसे विरोधी वि.वा.बल या बैक e.m.f. कहते है इसका मान
(Eb) =(Φ.Z.N.P)/(60A)
Φ = प्रति पोल चुम्बकीय फ्लक्स
Z = आर्मेचर चालको की संख्या
N = आर्मेचर की घूर्णन गति
P = पोल्स की संख्या
A =आर्मेचर वाइण्डिंग में समान्तर पथों की संख्या
बैक e.m.f.(Eb)
तथा आरोपित वि.वा.बल(V) के बीच सम्बन्ध
Eb = V – Ia.Ra
आर्मेचर में उत्पन्न टॉर्क:- आर्मेचर कि कुण्डली में कई तार(चालक) होते है अतः सभी तारों में उत्पन्न टॉर्क(Ta) = (Φ.Z.P .Ia )/2π.A
शाफ़्ट टॉर्क:- आर्मेचर में जो टार्क पैदा
होता है उसका कुछ भाग घर्षण आदि में नष्ट हो जाता है इसके बाद जितने टार्क का
उपयोग हम करते है उसे शाफ़्ट टार्क कहते है
(Tsh) = (BHP×60×735.5)/2π.N
BHP = 2π.T.N/60×735.5
T = मोटर का टार्क
BHP = मोटर द्वारा उत्पन्न यांत्रिक शक्ति
डी. सी. मोटर के प्रकार:- डी.सी. जनित्र की तरह
डी.सी. मोटर भी तीन प्रकार के होते है
1. सीरीज मोटर, 2. शंट
मोटर, 3. कम्पाउण्ड मोटर
1. सीरीज मोटर- इस मोटर में आर्मेचर तथा फील्ड-वाइण्डिंग दोनों श्रेणी क्रम में जुड़े रहते है इसमें फील्ड-वाइण्डिंग मोटे तार की कम लपेट वाली बनाई जाती है ।
Eb = बैक e.m.f.Ia.Ra = आर्मेचर वोल्टेज ड्रॉपIse.Rse = सीरीज फील्ड वोल्टेज ड्रॉप
2. शंट मोटर- इस मोटर में आर्मेचर तथा फील्ड-वाइण्डिंग दोनों सप्लाई के साथ समान्तर क्रम में जुड़े रहते है इसमें फील्ड-वाइण्डिंग पतले तार की अधिक लपेट वाली बनाई जाती है ।
V = शंट-फील्ड वाइण्डिंग वोल्टेजIsh = शंट-फील्ड वाइण्डिंग धाराRsh = शंट-फील्ड वाइण्डिंग प्रतिरोध
3. कम्पाउण्ड मोटर-
यह दो प्रकार का होता है
1. शॉर्ट-शंट कम्पाउण्ड मोटर, 2. लाँग-शंट कम्पाउण्ड मोटर
1. शॉर्ट-शंट कम्पाउण्ड मोटर:- इस मोटर में फील्ड-वाइण्डिंग को दो भागों में विभक्त करके एक भाग को आर्मेचर के समान्तर क्रम(शंट-फील्ड) में तथा दुसरे भाग को इन दोनों(आर्मेचर और शंट-फील्ड) के साथ श्रेणी क्रम(सीरीज-फील्ड) में जोड़ा जाता है तो उसे शॉर्ट-शंट कम्पाउण्ड मोटर कहते है।
क्यूम्युलेटिव कम्पाउण्ड मोटर- जब कम्पाउण्ड मोटर की दोनों सीरीज तथा शंट फील्ड वाइण्डिंग को इस प्रकार संयोजित किया जाता है कि दोनों के द्वारा पैदा किया
गया चुम्बकीय क्षेत्र एक दुसरे का सहयोग करें तो उसे क्यूम्युलेटिव कम्पाउण्ड मोटर
कहते है ये दो प्रकार के होते है
डिफरैन्शियल कम्पाउण्ड मोटर- जब कम्पाउण्ड मोटर की दोनों सीरीज तथा शंट फील्ड वाइण्डिंग को इस प्रकार संयोजित किया जाता है कि दोनों के द्वारा पैदा किया
गया चुम्बकीय क्षेत्र एक दुसरे का सहयोग करें तो उसे क्यूम्युलेटिव कम्पाउण्ड मोटर
कहते है ये दो प्रकार के होते है
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