धातु एक खनिज पदार्थ होता है । जो खदानों से
निकाले गए कच्चे पदार्थ को साफ करके तैयार किया जाता है। यह कच्चा पदार्थ अयस्क
कहलाता है। धातु ठोस, भारी, अपारदर्शक, विद्युत व ताप का सुचालक
होता है। इसे पीटने पर झंकार की आवाज
होती है। धातुओं को आपस में मिलाकर
मिश्रित धातु बनाई जाती है। इन्हें खींचकर अथवा पीटकर तार या पतली चादर में
बदला जा सकता है जबकि अधातु में इस प्रकार का कोई गुण नहीं पाया जाता है । धातु का
इंजीनियरिंग में बहुत ही महत्व है। एक सुई से लेकर बड़े-बड़े जलयान तक धातु से ही
बनाए जाते हैं।
धातु के गुण:- धातु में निम्न गुण होते हैं
।
1. भौतिक गुण,
2. यांत्रिक
गुण,
3. रासायनिक गुण,
1. भौतिक गुण(Physical Properties)- प्राकृतिक गुणों को ही भौतिक
गुण कहा जाता है। आरंभिक रूप में धातु की पहचान इन्हीं गुणों से होती है। यह गुण
देखने या छूने से ही मालूम होता है। जो निम्न प्रकार है।
भार(Weight)- प्रत्येक धातु का अपना भार होता है। अलग-अलग
धातुओं का अलग-अलग भार होता है। प्रत्येक धातु का भार उसके घनत्व पर निर्भर करता
है। जिसका घनत्व अधिक होता है उसका भार भी अधिक होता है तथा जिसका घनत्व कम होता
है उसका भार भी कम होता है।
गलनीयता(Fusibility)- यह धातु का वह गुण है जिसके
कारण ठोस धातु एक निश्चित तापक्रम पर पिघलने लगता है । इसी गुण के कारण धातुओं को
किसी भी आकृति में बदला जा सकता है। प्रत्येक धातु अलग-अलग ताप पर पिघलता है। कुछ
धातुओं की गलनीयता निम्नवत् है।
ताप और विद्युत का सुचालक- प्रत्येक धातु में विद्युत व
ताप की चालकता का अलग-अलग स्वभाव होता है। जैसे धातु की किसी क्षण के एक सिरे को
गर्म किया जाता है तो कुछ समय बाद दूसरा सिरा भी गर्म हो जाता है जबकि किसी अधातु
के एक सिरे को गर्म करें तो दूसरे सिरे तक ताप नहीं पहुंचेगी।
अपारदर्शक- प्रत्येक धातु अपारदर्शक
होती है। अर्थात् किसी भी धातु के आर पार देखा नहीं जा सकता।
ठोस(Solid)- केवल पारे को छोड़कर सभी धातुएं ठोस होती हैं।
रंग(Colour)- प्रत्येक धातु का अपना कोई न कोई रंग होता है।
जिसके कारण धातु को आसानी से पहचाना जा सकता है। जैसे सोने का रंग सुनहरा, तांबे का रंग लाल, चांदी का सफेद इत्यादि।
बनावट(Structure)- धातु की बनावट का अर्थ है कि यदि धातु को तोड़ा
जाए तो उसके अंदर का बनावट किस प्रकार की है। क्योंकि कुछ धातुओं के कण मोटे, कुछ के बारीक व कुछ के
रवेदार होते हैं। जैसे रॉट आयरन रेशे वाली संरचना तथा कास्ट आयरन की संरचना कणनुमा
होती है।
चुंबकीयता(Magnetism)- यह धातु का वह गुण है जिसके कारण चुम्बक धातु
को अपनी ओर खींचता है। परंतु यह सभी धातुओं में नहीं पाया जाता है केवल लौह धातुएँ
ही चुम्बकीय होती हैं।
2. यांत्रिक गुण(Mechanical Properties)- इसके अंतर्गत निम्नलिखित गुण
आते हैं।
लचीलापन(Elasticity)- यह धातु का वह गुण है जिसमें
यदि धातु पर भार डाला जाए तो वह लचक जाएगा व भार हटाने पर अपनी पहली वाली दशा में
आ जाएगा। अर्थात् यदि धातु की किसी तार के सीरे पर भार बांधकर दूसरा सिरा किसी हुक
से बाँधकर लटकाया जाए तो तार कुछ लम्बा हो जाएगा व भार हटाने पर अपने पहले वाली
दशा में आ जाएगा धातु के इसी गुण को लचीलापन कहा जाता है।
प्लास्टीसिटी या सुघट्यता(Plasticity)- यह धातु का वह गुण है जिसके
कारण इस पर दाब, ताप या दोनों के प्रभाव से
इसे एक निश्चित आकार में बदला जा सकता है इसी गुण के कारण धातु दाब या ताप के
प्रभाव से विभिन्न दिशाओं में फैलना शुरू हो जाता है तथा स्थाई अवस्था धारण कर
लेता है।
टेनासिटी या चीमड़पन(Tenacity)- यह भी धातु के लचीलेपन से
मिलता-जुलता गुण है। इस गुण के कारण धातु खींचने व दाब पड़ने पर टूटता नहीं है।
इसमें तार की लंबाई का बढ़ना तार के सिरे पर डाले गए भार पर निर्भर करता है।
यील्ड बिंदु(Yield Point)- यदि धातु तार पर अधिक भार
डाला जाए तो तार की लंबाई बढ़ती जाएगी परंतु भार के हटाने पर अपनी पूर्व स्थान में
नहीं आए आएगी तार के इसी पॉइंट को यील्ड बिंदु कहते हैं इस बिंदु तक आने के बाद
धातु में खिंचाव की शक्ति समाप्त हो जाती है।
तन्यता(Tensile)- इस गुण के कारण धातु बिना टूटे आसानी से तनाव
उत्पन्न कराती है। इसी गुण के कारण धातुओं के तार बनाये जाते है। जिस खिंचाव शक्ति
को धातु बिना टूटे
सहन
कर लेती है उसे टेंसाइल स्ट्रेंथ कहते हैं। तन्यता का गुण सोना में सबसे अधिक तथा
लेड में सबसे कम होता है। अतः सोने का आसानी से तार या चादर बनाया जा सकता है।
अल्टीमेट लोड(Ultimate Load)- जिस भार से अतिरिक्त भार
डालने पर धातु टूट जाती है उसे अल्टीमेट लोड कहा जाता है ।
वर्किंग लोड(Working load)- वास्तव में जिस भार(लोड) के
लिए किसी धातु का कोई मशीनरी पार्ट बनाया जाता है उस भार को वर्किंग लोड कहते है।
यह लोड हमेशा अल्टीमेट लोड का पाँचवा या छठवां भाग होता है। बड़े-बड़े पुल, क्रेन, मकान आदि इसी सिद्धांत पर
बनाये जाते है।
सेफ्टी फैक्टर(Safety Factor)- अल्टीमेट लोड तथा वर्किंग
लोड के अनुपात को सेफ्टी फैक्टर कहते है।
स्ट्रेन(Strain)- हम जानते हैं कि धातुओं पर
भार पड़ने पर उनकी लम्बाई बढ़ जाती है। इनकी बड़ी हुई लम्बाई और वास्तविक लम्बाई के अनुपात को स्ट्रेन कहते
हैं ।
कम्प्रेशन स्ट्रैस(Compression Stress)- किसी धातु पर यदि हम दबाव
डालते हैं तो वह दब जाएगा इसे कम्प्रेशन स्ट्रैस या संपीड़न तनाव कहते हैं।
कर्तन स्ट्रैस(Shearing Stress)- किसी धातु को काटते समय जो
दबाव पड़ता है उसे शीयरिंग स्ट्रेस या कर्तन तनाव कहत हैं।
कठोरपन(Hardness)- धातुओं
का वह गुण जिसके कारण वे घिसने, कटने व खुरचने का विरोध
करती हैं कठोरता कहलाता है ।
चिमड़पन(Toughness)- धातुओं
का वह गुण जिसके कारण वे चोट लगने, मोड़ने, तोड़ने
या मरोड़ने का विरोध करती हैं जैसे – टंग्स्टन
, ताँबा , सोना आदि
।
आघातवर्धनीयता(Malleability)- आघातवर्धनीयता किसी
पदार्थ की दबाव या आघात पड़ने पर बिना टूटे आकार बदलने की क्षमता को कहते हैं।
धातु के इसी गुण के कारण ही हम धातु की चादरें बना पते है।निम्न पदार्थो की आघातवर्धनीयता घटते क्रम
में- gold,
Silver, Aluminium, Copper, Tin, Platinum, Lead, Zinc, Iron, Nickel.
तन्यता(ductility)- इस गुण के कारण किसी
पदार्थ को आसानी से खींचकर तार के रूप
में बनाया जा सकता हैं, जबकि अतन्य (non-ductile) पदार्थ
तनाव डालने पर असानी से नहीं खिंचते और अक्सर टूट जाते हैं।
संघट्ट प्रतिरोध(impact Resistance)- धातु का
यह गुण धातु पर अचानक चोट लगने से उसे टूटने से रोकता है।
भंगुरता(Brittleness)- किसी
पदार्थ पर बल लगाने पर यदि पदार्थ टूटकर बिखर जाय तो उस पदार्थ को भंगुर पदार्थ कहते
हैं। कार्बन कि मात्रा बढ़ने पर steel की
भंगुरता बढती है। अधिकांश सिरामिक पदार्थ, काँच और
कुछ बहुलक भंगुर पदार्थ होते हैं।
सामर्थ्य(Strength)- यह धातु का
वह गुण है जिसके कारण धातु अपनी आकृति व अवस्था में परिवर्तन किये बिना अधिक से
अधिक भार अथवां बल सहन करने की क्षमता रखता है।
मशीननता(Machinability)- धातु का
वह गुण जिसके कारण धातु को किसी कटिंग टूल के द्वारा आसानी से काटा जा सकता है
जिससे सतह पर अच्छी चमकदार फिनिश लाई जा सके।
2. रासायनिक गुण(Chemical
Properties)- जब किसी
धातु की किसी दुसरे तत्व के साथ अभिक्रिया करायी जाती है तो धातु के गुणों में
परिवर्तन हो जाता है। जैसे- लगभग सभी धातुएँ ऑक्सीजन के साथ
अभिक्रिया करके ऑक्साइड का निर्माण करती है।
धातु के प्रकार:- धातुएँ
दो प्रकार की होती है।
1. लौह
धातुएँ, 2. अलौह
धातुएँ
1.
लौह
धातुएँ(Ferrous
Metals)- वे धातुएँ जिसमें लोहे के कण पाए जाते है उन्हें लौह धातुएँ
कहते है। लौह धातुओ को चुम्बक अपनी ओर आकर्षित
करते है । ग्राइंडर पर रगड़ने पर
चिंगारी निकलती है तथा नमी के प्रभाव से जंग लग जाता है ।
2. अलौह धातुएँ(Non-Ferrous
Metals)- इन धातुओं में लोहे के कण
बिल्कुल नही पाए जाते है । जिससे
चुम्बक इनको अपनी ओर आकर्षित नही करता है । जैसे-
सोना, चाँदी, तांबा, एल्युमिनियम, टिन आदि ।
धातु तथा अधातु में अंतर-
धातु |
अधातु |
1. पारे को छोड़कर सभी
धातुएँ ठोस होती है। 2.
धातुओं को पीटकर चादर तथा खींचकर तार बनाया जा सकता है 3.
धातुओं का गलनांक अधिक होता है 4.
धातुओं पर चोट करने पर एक विशेष प्रकार की आवाज उत्पन्न होती है 5.
दो या दो से अधिक धातुओ को मिलाकर मिश्र धातु बनायीं जाती है 6.
यह ऊष्मा तथा विद्युत का सुचालक होता है |
1. अधातु ठोस, द्रव, गैस
तीनो अवस्थाओं में पाई जाती है 2. इनको न पीटकर चादर तथा न
ही खींचकर तार बनाया जा सकता है 3. कार्बन व सिलिकन को छोड़कर सभी अधातुओं का गलनांक कम होता है। 4. अधातु पर चोट लगने से कोई विशेष आवाज नही होती है 5. मिश्र धातुएं नही बनाई जा सकती। 6. कार्बन और ग्रेफाइड को छोड़कर सभी धातुएं कुचालक होती है। |
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