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ऊष्मा उपचार(Heat Treatment):-

ऊष्मा उपचार(Heat treatment):- यह एक ऐसी विधि है जिसके द्वारा धातु को गर्म तथा ठंडा करके उसके अन्दर के संरचना तथा यांत्रिक गुणों को आवश्यकतानुसार बदला जाता है।

धातु कि संरचना:- सभी प्रकार की धातुएँ कणों का समूह होते है। कणों के आकार तथा प्रकार को ही धातु कि संरचना कहते है।

स्टील की संरचना के घटक:- स्टील कि संरचना विभिन्न संघटकों पर निर्भर करती है, जो निम्नलिखित है-

1.फैराइट:- यह लगभग लोहे का शुद्ध रूप होता है। इसकी संरचना बहुत नरम व डक्टाइल होती है। हार्ड करने पर इसकी संरचना बदल जाती है। इसमें चुम्बकीय गुण बहुत अधिक होता है।

2.सीमेंटाइट:- यह फैराइट तथा कार्बन का रासायनिक मिश्रण होता है। यह हार्ड और भंगुर होता है।

3. ऑस्टेनाइट:- जब स्टील को अपर क्रिटिकल तापमान तक गर्म किया जाता है तो स्टील कि संरचना में पूरी तरह से आतंरिक परिवर्तन हो जाता है जिसे ऑस्टेनाइट कहते है। यह अचुम्बकीय होता है।

4. पीयरलाइट:- यह फेराइट सीमेंटाइट का मिश्रण होता है। इसमें 88% फेराइट और 12% सीमेंटाइट होता है। यह संरचना बहुत ही मजबूत होती है।

उष्णन(Heating):- किसी भट्ठी में कार्बन स्टील के कार्य खण्ड को गर्म किया जाता है तो उसे उष्णन कहा जाता है। उष्णन सम्बन्धी महत्वपूर्ण शब्द-

1. क्रांतिक बिन्दु:- जब स्टील को गर्म किया जाता है तो स्टील का तापमान बढ़ने लगता है फिर एक निश्चित बिन्दु के बाद ताप बढ़ना बंद हो जाता है, इस बिन्दु को क्रांतिक बिन्दु कहते है। यह दो प्रकार के होते है।

1.निचला क्रान्तिक बिन्दु:- स्टील का तापमान रुकने के बाद जिस बिन्दु पर तापमान दुबारा बढ़ना शुरू करता है उसे निचला क्रान्तिक बिन्दु कहते है। इस तापमान पर स्टील की आतंरिक संरचना में परिवर्तन होना शुरू हो जाता है, जो बाद में ठोस घोल बनाता है। जिसे ऑस्टेनाइट कहते है। स्टील के लिए निचला क्रान्तिक बिन्दु 723C होता है।

2.ऊपरी क्रान्तिक बिन्दु:- जिस तापमान पर कार्बन आयरन में पूरी तरह घुल जाता है उस तापमान को ऊपरी क्रान्तिक बिन्दु कहते है। यह लगभग 800C होता है।

क्रांतिक रेंज(Critical Range):- निचला क्रान्तिक बिन्दु से ऊपरी क्रान्तिक बिन्दु के मध्य के तापमान को क्रांतिक रेंज कहते है।

शीतलन(Cooling):- कार्बन स्टील को गर्म करने के पश्चात ठण्डा करते समय कार्य-खण्ड में वान्छित गुणों कि प्राप्ति के लिए आवश्यकतानुसार धीरे–धीरे अथवा तेजी से ठण्डा किया जाता है। कार्बन स्टील का शीतलन जिस प्रकार से किया जाता है उसी प्रकार का गुण कार्बन स्टील में प्राप्त होता है।

ऊष्मा उपचार की विधियाँ:-

1. कठोरीकरण:- इस ऊष्मा उपचार के बाद धातु घिसावटरोधी बन जाता है जिससे इसके अन्दर  अन्य धातुओं को काटने के गुण आ जाते है।

बुझाना(Quenching):- इस ऊष्मा उपचार में उपयुक्त ताप तक गर्म किये गये जॉब को पानी तेल या किसी अन्य द्रव में डुबोकर शीग्रता से ठण्डा किया जाता है।

कठोरीकरण का सिद्धान्त:- यदि गर्म किये गये स्टील को तेजी से ठण्डा या बुझाया जाय तो स्टील से अतिरिक्त कार्बन को निकलने का मौका नही मिल पाता। ये कार्बन स्टील के बीच फँस जाते है और अतिरिक्त विरूपण पैदा करते है। जिससे स्टील की कठोरता बढ़ जाती है तथा सामर्थ्य तथा तन्यता घट जाती है।

कठोरीकरण निम्न यांत्रिक गुणों पर निर्भर करता है-

1. स्टील में कार्बन की मात्रा

2. तापक्रम

3. ताप कि अवधि

4. बुझाना शुरू करते समय तापक्रम

5. बुझाते समय शीतलन की दर

कठोरीकरण प्रक्रिया:- स्टील में वांछितप्रभाव पैदा करने के लिए ठोस घोल में आवश्यकतानुसार कार्बन मिला देना चाहिए, जिससे स्टील को ठण्डा करते समय कुछ कार्बन धातु के अन्दर प्रवेश कर जाये तथा आन्तरिक विरूपण पैदा कर सके।

सोखने का समय:- स्टील को आवश्यक ताप तक गर्म करने के पश्चात उसको उसी तापक्रम पर थोड़ी देर के लिए रखा जाता है। इसको सोखना कहते है प्रायः 10 मिमी मोटे स्टील के लिए 5 मिनट सोखने का समय होता है।

बुझाने का माध्यम:- स्टील को बिभिन्न माध्यमों द्वारा बुझाया जाता है। बुझाने का माध्यम ठण्डा करने की दर को नियंत्रित करता है। बुझाने के माध्यम निम्न है-

1- जल्दी से बुझाने के लिए जल में नमक या कास्टिक सोडा का घोल प्रयोग किया जाता है।

2- धीरे-धीरे बुझाने के लिए वायु के झोके से बुझाया जाता जाता है।

3- मध्यवर्ती बुझाने के लिए तेल का प्रयोग किया जाता है।

4- साधारण रूप से बुझाने के लिए जल व तेल का प्रयोग किया जाता है।

5- विशेष प्रकार के अलॉय स्टील को वायु में बुझाया जाता है।

2. टैम्परिंग(Tempering):- कठोरीकरण प्रक्रिया के दौरान जब इस्पात में मार्टेनसाइट बनाने के लिए स्टील को तेजी से ठण्डा किया जाता है, तो स्टील में रेसीड्यूल स्ट्रैसेस(Residual stresses) उत्पन्न हो जाते है। जिससे इस्पात कठोर व भंगुर हो जाता है। इस भंगुरता को दूर करने के लिए स्टील की टैम्परिंग की जाती है।

  टैम्परिंग के लिए इस्पात को लोअर क्रिटिकल प्वाइण्ट से भी कम (साधारण कार्बन स्टील के लिए लगभग 280C तथा अलॉय स्टील के लिए 560C से 705C तक) तापमान पर 5 मिनट प्रति मिमी मोटाई के हिसाब से रखा जाता है। जिससे पुरे जॉब का तापमान एक सामान हो जाये। अब इसे पानी, तेल या वायु में ठण्डा किया जाता है।

टैम्परिंग की विधियाँ:- यह चार प्रकार से की जाती है-

1. प्वाइण्ट टैम्परिंग,       2. हॉट प्लेट टैम्परिंग

3. सैंडबाथ टैम्परिंग,       4. लैड बाथ टैम्परिंग

1. प्वाइण्ट टैम्परिंग:- इस विधि में केवल उसी भाग को टैम्पर किया जाता है जिस भाग से कटिंग करना होता है। इस भाग को अपर क्रिटिकल तापमान तक गर्म करके तेल या पानी में पूर्ण रूप से ठण्डा किया जाता है। इस विधि में हार्डर्निंग व टैम्परिंग साथ-साथ होता है। इसे सिंगल हीट विधि भी कहा जाता है।

2. हॉट-प्लेट टैम्परिंग:- इस विधि में सबसे पहले मोटे व बड़े प्लेट को गर्म किया जाता है। उसके बाद जिस छोटे पुर्जे या टूल को टैम्पर करना हो उसे बाहर की ओर रखकर पीछे से गर्मी आगे की ओर बढ़ाया जाता है। आवश्यकतानुसार गर्म हो जाने के बाद इसे पानी में डुबो दिया जाता है।

3. सैंडबाथ टैम्परिंग:- इस विधि में हार्ड किये जॉब को गर्म रेत पर इस प्रकार रखा जाता है कि टैम्पर वाला भाग रेत के अन्दर रहे फिर जब जॉब आवश्यकतानुसार गर्म हो जाता है तो उसे ठण्डा कर लिया जाता है।

4. लैड बाथ टैम्परिंग:- इस विधि में रांगे और सीसे को 7:5 के अनुपात में मिलाकर किसी बर्तन में पिघला लिया जाता है, फिर जॉब को उसी में डुबोकर आवश्यकतानुसार गर्म किया जाता है। गर्म होने का बाद ठण्डा कर लिया जाता है।

3. एनीलिंग(Annealing):- धातुएँ कास्टिंग के समय पर तेजी से ठण्डा होने के कारण उनमें कठोरता आ जाती है। जिससे आगे की प्रक्रिया सम्भव नही हो पाती है। ऐसी अवस्था में धातुओं को ऐसे तापमान तक (स्टील को लोअर क्रिटिकल तापमान से 50C ऊपर) गर्म किया जाता है जो उनके अन्दर आये आतंरिक प्रतिबल को समाप्त कर दें। इसके पश्चात् धातुओं को साधारणतः धीरे-धीरे (उपलों का राख, बुझा हुआ चुना, रेत आदि में) ठण्डा किया जाता है। इसी प्रक्रिया को अनीलिंग कहते है।

4. नॉर्मलाइजिंग(Normalising):- नाम के ही अनुसार यह किसी जॉब पर विभिन्न संक्रियाओं (जैसे- हैमरिंग, रोलिंग, वैल्डिंग, हीट ट्रीटमेन्ट आदि) के बाद धातु कि आतंरिक संरचना में आयी विकृति को दूर करने के लिए किया किया जाता है। इसमें जॉब को कार्बन प्रतिशतता के अनुसार उचित ताप तक गर्म किया जाता है। फिर धीरे-धीरे स्वतः ही हवा में ठण्डा होने के लिए छोड़ दिया जाता है। इस प्रकार धातु के कणों में जो तनाव होता है वह कम हो जाता है तथा कण बारीक़ हो जाते है। जिससे धातु मशीनन योग्य हो जाती है।

5. केस या सतह हार्डनिंग(Case Hardening):- इसमें माइल्ड स्टील अथवा लो कार्बन स्टील से बने पुर्जों को घिसने से बचाने के लिए केवल उनकी बाहरी सतह को कठोर किया जाता है। जबकि जॉब के अन्दर का भाग अपने वास्तविक रूप में ही रहता है।

केस हार्डनिंग की विधियाँ:-

1. केस कार्बोराइजिंग,                  2. नाइट्राइडिंग

3. साइनाइडिंग,                       4. फ्लेम हार्डनिंग

5. इन्डक्सन हार्डनिंग

1. केस कार्बोराइजिंग:- इस विधि में जॉब के बाहरी सतह पर कुछ गहराई तक कार्बन की मात्रा चढ़ाकर केस हार्ड किया जाता है। यह निम्न विधियों द्वारा किया जाता है-

अ) पैक कार्बोराइजिंग:- इस विधि में जॉब को साफ करके स्टील या कॉस्ट आयरन के बक्से में कार्बन युक्त पदार्थ के साथ एयर टाईट बंद कर दिया जाता है। फिर इसे 850C से 1000C तक गर्म किया जाता है। कुछ समय तक भट्टी में रखने के बाद बाहर निकालकार ठण्डा कर लिया जाता है। इसमें जॉब के केस हार्डनिंग की गहराई, ताप तथा गर्म करने के समय पर निर्भर करता है।

ब) सोडियम कार्बोराइजिंग:- इस विधि में सोडियम क्लोराइड, सोडियम सायनाइड और सोडियम कार्बोनेट को एक बक्से में डालकर 900C तक गर्म किया जाता है। जिससे मिश्रण द्रव में बदल जाता है। इस द्रव में जॉब को बांधकर लटका दिया जाता है जिससे जॉब का बाहरी सतह कठोर हो जाता है।

स) गैस कार्बोराइजिंग:- इस विधि में जॉब एक विशेष बंद फर्नेस में रखा जाता है और अधिक कार्बन युक्त (कार्बन मोनो ऑक्साइड, प्रोपेन, इथेन, ब्यूटेन आदि) गर्म गैसों को एक निश्चित दबाव से फर्नेस में छोड़ा जाता है। इस भट्ठी का तापमान लगभग 1030C तक रखा जाता है। इस विधि से बहुत कम समय में ही 1 मिमी० गहराई तक जॉब की सतह कठोर हो जाती है।

2. नाइट्राइडिंग:- इस विधि में जॉब को एक ऊष्मा प्रतिरोधी अलॉय स्टील के बक्से में रखकर अमोनिया गैस भर दी जाती है। फिर इस बक्से को मफ़ल फर्नेस में रखते है। फर्नेस के द्वारा बक्से को 510C से 640C तक गर्म किया जाता है जिससे स्टील कि बाहरी सतह कठोर हो जाती है। इसमें केवल अलॉय स्टील के पार्ट्स को ही कठोर किया जाता है।

3. साइनाइडिंग:- इस विधि में जॉब को साइनाइड बाथ में गर्म किया जाता है जिसमे 30% सोडियम, 35% सोडियम कार्बोनेट तथा 35% सोडियम क्लोराइड होता है। इस मिश्रण को लगभग 800C से 850C तक गर्म किया जाता है। जॉब को गर्म करने के बाद उसे पानी या तेल में ठण्डा किया जाता है।

4. फ्लेम हार्डनिंग:- इस विधि में केवल मीडियम कार्बन स्टील के बने पुर्जे जैसे क्रैंक-पिन, एक्सल, गियर्स आदि के केस को हार्ड किया जाता है। इसमें जॉब के बाहरी सतह को घुमते हुए फ्लेम टार्च द्वारा एक किनारे से दुसरे किनारे तक गर्म किया जाता है, तत्पश्चात गर्म सतह को पानी के फब्बारे द्वारा शीघ्र ठण्डा किया जाता है।

5. इन्डक्सन हार्डनिंग:- इस विधि में जॉब के बाहरी सतह को उसके आकार के अनुसार बने विद्युत् इन्डक्ट में रखा जाता है। इसमें तांबे कि इंडक्शन क्वायल लगी होती है। जॉब के बाहरी सतह को गर्म करने के लिए A.C. दी जाती है। लगभग 750C से 800C तक गर्म करने के बाद पानी के फब्बारे से ठण्डा कर लिया जाता है।

6. उच्च गति इस्पात (H.S.S.) का कठोरीकरण:- एलॉय के अनुसार जॉब को लगभग 1200C तापक्रम तक तेजी से गर्म किया जाता है। तेजी से इसलिए गर्म किया जाता है क्योकि इससे आतंरिक संरचना में वृद्धि कम होती है इसके बाद इसे तेजी से ठण्डा किया जाता है।

7. अलौह धातुओं की अनीलिंग:- स्टील कि तरह ही अलौह धातुओं को भी गर्म करके ठण्डा करते हुए मुलायम बनाया जाता है। अतः ठण्डा करके की दर अपेक्षाकृत कम होती है तांबे को पानी में बुझाया जाता है जिससे तीब्र सिकुड़न से कार्य-खण्ड कि सतह पर पैदा हुई काली ऑक्साइड कि परत भी साफ हो जाती है।

8. अलौह धातुओं का कठोरीकरण:- चैम्बर रूपी भट्ठी में ईधन के जलने की छमता कम होती है तथा कठोरीकरण तापक्रम तक पहुचने में कठिनाई होती है। इसके समाधान के लिए आजकल लवण-कुंड भट्ठी का प्रयोग किया जाता है, जिसमे ईधन के रूप में गैस तथा विद्युत का प्रयोग किया जाता है।

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