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सुरक्षा एवं सावधानियाँ(Safety & Precautions):-

वर्कशॉप में सुरक्षा को मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया गया है

1. सामान्य सुरक्षा

1. वर्कशॉप की फर्श को साफ रखना चाहिए तेल, ग्रीस आदि फर्श पर नही होना चाहिए तथा अन्य कोई भी सामान इधर-उधर पड़ा नहीं होना चाहिए।

2. किसी भी ऐसे मशीन अथवा उपकरण को नहीं छूना चाहिए जिसके बारे में पूर्ण जानकारी न हो

3. हर टूल का सही उपयोग करना चाहिए

4. वर्कशॉप में पर्याप्त उजाला होना चाहिए

5. टूटे हुए टूल का प्रयोग नहीं करना चाहिए

6. कार्य करते समय साथी कारीगर के साथ मजाक नहीं करना चाहिए

7. चालू हालत में मशीन को छोड़कर कही नहीं जाना चाहिए

8. नुकीले औजारों को काम करने के बाद सावधानी से साफ़ करके अलग रख देना चाहिए

2. स्वयं की सुरक्षा

1. एक पीस वाला ओवरआल या बॉयलर सूट पहनना चाहिए

2. सूट बहुत ज्यादा टाईट अथवा ढीला नहीं होना चाहिए

3. टाई, चैन, घड़ी, सिकड़ी आदि नहीं पहनना चाहिए तथा बाल छोटे होने चाहिए

4. सुरक्षित जूतें तथा चश्में पहन कर रखना चाहिए

5. टूटे हुए टूल का प्रयोग नहीं करना चाहिए

6. गीले हाथों से बिजली के उपकरण को नहीं छूना चाहिए

7. अपने काम को ध्यानपूर्वक व्यवस्थित तरीके से करना चाहिए

8. चलती हुयी मशीन को हाथ से रोकने का प्रयास नहीं करना चहिये

3. मशीन सुरक्षा

1. मशीन को हमेशा साफ-सुथरा रखना चाहिए

2. जब तक मशीन के बारे में पूरी जानकारी न हो तब तक मशीन नहीं चलाना चाहिए

3. मशीन को चालू करने से पूर्व उसकी ऑयलिंग जरुर कर लेना चाहिए

4. मशीन के घिसे हुए पार्ट्स अथवा उपसाधन को तुरन्त बदल देना चाहिए

5. मशीन को रोक कर ही माप लेना चाहिए

6. मशीन का स्ट्रोक अथवा टूल इत्यादि मशीन को बन्द करके ही बदलना चाहिए

7. कुछ गलत होने पर मशीन को तुरन्त बन्द कर देना चाहिए

व्यक्तिगत सुरक्षात्मक उपकरण(PPE)(Personal Protective Equipment):-

   कार्यस्थल पर कर्मचारी को खतरों से बचाने के लिए कुछ सुरक्षात्मक उपकरण का प्रयोग आवश्यक रूप से कराया जाता है ये सुरक्षात्मक उपकरण कर्मचारी के शरीर के विभिन्न भागों की सुरक्षा करते है जो निम्न प्रकार के होते है

1. हेलमेट:(PPE1)- यह किसी भी खतरे से कर्मचारी के सिर की सुरक्षा करता है

2. सुरक्षा जूतें:(PPE2)- यह कर्मचारी के पैरों की सुरक्षा करता है साथ ही गीले स्थानों पर भी काम करने में सुबिधा होती है

3. स्वास्थ्य सम्बन्धी उपकरण:(PPE3)- इसमें नाक व मुह पर पहने जाने वाला मास्क आता है यह उपकरण धूल के कण, जहरीली गैसों आदि से सुरक्षा प्रदान करता है

4. भुजाएं तथा हाथ की सुरक्षा:(PPE4)- हाथ के दस्तानों से हाथ की सुरक्षा होती है यह बिजली, ताप तथा नुकीले चीजों से हाथ को सुरक्षा प्रदान करता है

5. ऑख तथा चेहरे की सुरक्षा:(PPE5)- इसमें चश्में, ईयर प्लग तथा हाथ के स्क्रीन आते है यह उड़ते हुए धूल के कणों, विकिरण, ऊष्मा आदि से आँख, कान तथा चेहरे की सुरक्षा करते है

6. सुरक्षात्मक कपड़े:(PPE6)- इसमें पूरे शरीर को ढ़कने का कपड़ा रहता है यह पूरे शरीर को सुरक्षा प्रदान करता है

7. कानों की सुरक्षा:(PPE7)- इसमें ईयर प्लग आते है यह उड़ते हुए धूल के कणों, विकिरण, ऊष्मा आदि से कान की सुरक्षा करते है

8. सुरक्षा बेल्ट और उपकरण:(PPE8)- इसमें मजबूत रस्सी का उपयोग ऊचाई वाले स्थानों पर कार्य करने के लिए किया जाता है रस्सी को अपने शरीर से बांधकर दुसरे सिरे को किसी मजबूत जगह पर बांध दिया जाता है जिससे यदि ऊचाई पर कार्य करते समय गिरे तो रस्सी के सहारे लटक जाये

प्राथमिक उपचार:- कार्यशाला में कार्य करते समय कभी भी कोई भी दुर्घटना हो सकती है और जब कोई भी व्यक्ति चोटिल हो जाता है तो उसे प्राथमिक उपचार की अत्यन्त आवश्यकता होती है इसी उद्देश्य से कार्यशाला में कुछ विशिष्ट सामग्री एवं दवाएं सुरक्षा किट के रूप में रखी जाती है

प्राथमिक उपचार की कुछ प्रमुख बातें-

1. दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति को दुर्घटना स्थल से हटकर दुसरे स्थान पर आराम की स्थिति में लिटाना चाहिए

2. पीड़ित के आस-पास से भीड़ को हटाकर वातावरण शान्त और हवादार बनाना चाहिए

3. पीड़ित को श्वास लेने में दिक्कत हो तो उसे कृत्रिम श्वास देना चाहिए

व्यक्तिगत रक्षक उपकरण-

1. सिर की सुरक्षा हेलमेट, हेयर नेट, बम्प केप आदि से की जाती है

2. आँख की सुरक्षा के लिए चश्मा या हस्त स्क्रीन चश्मा पहनना चाहिए

3. चेहरे की सुरक्षा के लिए फेस शील्ड उपयोग करना चाहिए

4. कान की सुरक्षा के लिए ईयर-प्लग, मफ अथवा ईयर-वाल्ब लगाना चाहिए

5. शारीर की सुरक्षा इन्की जैकेट, कोट, एप्रन, बॉडी आर्मर आदि से करना चाहिए

6. पैरों की सुरक्षा के बूट, जूतें, एन्किलेट् आदि से करना चाहिए

कृत्रिम श्वास प्रक्रिया- कृत्रिम श्वास की चार प्रमुख विधियाँ है-

1. सिल्वेस्टर विधि

2. शैफर विधि

3. मुँह-से-मुँह में हवा भरना

4. कृत्रिम श्वास यन्त्र द्वारा

1. सिल्वेस्टर विधि- इस विधि में पीड़ित को पीठ के बल लिटाकर पीठ के निचे तकिया लगा दिया जाता है जिससे सीना कुछ ऊपर उठ जाता है पीड़ित के सिर के पास बैठकर उसके दोनों हाथों को मोड़कर उसके सिने पर रख देना चाहिए तथा 2-3 सेकेण्ड तक दबाव देना चाहिए फिर उसके हाथ को सिर के पास सीधा कर देना चाहिए इस प्रक्रिया को 10-12 बार प्रति मिनट की दर से करना चाहिए, जब तक कि पीड़ित की श्वास सामान्य न हो जाये इससे फेफड़े की हवा बार-बार अन्दर बाहर होती है और पीड़ित की श्वास क्रिया सामान्य हो जाती है

2. शैफर विधि- इस विधि में पीड़ित को पेट के बल लिटाकर पेट के निचे पतला तकिया लगा दिया जाता है फिर पीड़ित के घुटने के पास बैठकर दोनों हाथों को पीठ पर रख देना चाहिए तथा 2-3 सेकेण्ड तक दबाव देकर फिर छोड़ दें, फिर 2-3 सेकेण्ड तक दबाव देकर फिर छोड़ दें इस प्रक्रिया को 10-12 बार प्रति मिनट की दर से करना चाहिए जब तक की पीड़ित की श्वास सामान्य न हो जाये

3. मुँह-से-मुँह में हवा भरना- इस विधि में पीड़ित के मुँह में सीधे अपने मुँह से हवा भरकर श्वसन क्रिया पूर्ण करायी जाती है इसे लाबोर्ड विधि(Labord Method) भी कहते है

5-S संकल्पना- यह एक व्यवस्थित कार्य करने की प्रणाली है जिसकी सहायता से खर्च को कम रखते हुए उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है

1. Sort:- यह प्रथम ‘S’ कहलाता है इसमें वो सभी मद आते है जो उत्पादन की दृष्टि से आवश्यक नहीं होते है

2. Set in Order:- यह द्वितीय ‘S’ कहलाता है इसमें सभी मदों तथा कार्यों को व्यवस्थित रूप से क्रमबद्ध किया जाता है

3. Shine:- यह तृतीय ‘S’ कहलाता है इसमें कार्यक्षेत्र जैसे मशीन, वातावरण आदि को स्वच्छ रखा जाता है

4. Standardize:- यह चतुर्थ ‘S’ कहलाता है इसमें Sort, Set in Order तथा Shine इन तीनों स्तम्भों को कायम रखा जाता है

5. Sustain:- यह पाँचवा ‘S’ कहलाता है इसका उद्देश्य उचित रूप से सही विधियों एवं प्रक्रियाओं को कायम रखना होता है 

5-S संकल्पना

बेकार सामग्री का निपटान(Disposal of Waste Material):- इसमें उद्योगों से उपयोग होने वाला कॉटन सामग्री, लुब्रिकेंट, कुलेन्ट, धातुओं के चिप्स, इलेक्ट्रिक के बेकार सामान आदि सामग्री का निपटान करना जानते है

1. रिसायकलिंग(Recycling)- यह सामग्री को निपटने का सबसा अच्छा और सरल तरीका है इसमें बेकार सामग्री को पुनः उपयोग के लिए तैयार किया जाता है

2. कम्पोस्टिंग(Composting)- यह सामग्री निपटान का परम्परागत तरीका है इसमें बेकार सामग्री को कार्बनिक कम्पाउण्ड में बदलकर खाद बना दिया जाता है

3. लैण्डफिल्स(Landfills)- इसमें बेकार सामग्री से किसी खाली जगह को भर दिया जाता है जिससे जो उस स्थान को भरने के लिए जो मिट्टी की जरुरत होती उसका बचत हो जायेगा

4. जलाना- जिन सामग्री को किसी भी विधि से निपटान नहीं किया जा सकता उनको जला दिया जाता है बस ध्यान यह रखा जाता है कि जलाने से अधिक प्रदूषण न हो

बिभिन्न कचरे के लिए कूड़ेदान का कलर कोड-

सामग्री-

कागज

प्लास्टिक

धातु

काँच

खाद्य सामग्री

अन्य

कलर कोड-

ब्लू

पीला

लाल

हरा

काला

स्काई ब्लू

सुरक्षा चिन्ह:- सुरक्षा की दृष्टि से विभिन्न मशीनों तथा कार्यशाला आदि की दीवारों पर विभिन्न निर्देश, चिन्हों के रूप में (निशान के रूप में) बनाए जाते हैं। यह चिन्ह चार प्रकार के ग्रुपों में होते है।

1. निषेधात्मक चिन्ह,   2. अनिवार्य चिन्ह,   3. चेतावनी चिन्ह,   4. सूचनात्मक चिन्ह

1. निषेधात्मक चिन्ह- इस प्रकार के चिन्ह वृताकार होते है जिसका बैकग्राउण्ड सफेद तथा लाल रंग का बॉर्डर क्रॉस बार के साथ होता है इसकी आकृति काले रंग की होती है इन चिन्हों के द्वारा किसी विशेष प्रकार के कार्य को करने से माना किया जाता है जैसे, धूम्रपान न करना, आग न जलाना, दौड़ने से रोकना आदि

धूम्रपान निषेध

आकृति

वृत्ताकार

रंग

सफेद पृष्ठ-भूमि पर काला चिन्ह

अर्थ

ऐसा न करने को दर्शाता है

उदाहरण

धूम्रपान निषेध, आग जलने से मना, दौड़ने से मना इत्यादि

2. अनिवार्य चिन्ह- यह भी वृत्त के आकार में बने होते है किन्तु इनकी पृष्ठभूमि नीला तथा चित्र सफेद होता है इसमें बॉर्डर तथा क्रॉस बार नहीं बना होता है यह चित्र के माध्यम से किसी कार्य को करने के लिए बनाए जाते है 

 

हेलमेट पहनना

आकृति

वृत्ताकार

रंग

नीली पृष्ठ-भूमि पर सफेद चिन्ह

अर्थ

ऐसा करने को दर्शाता है

उदाहरण

दस्ताना पहनना, हेलमेट पहनना, हाथ धोना इत्यादि

3. चेतावनी चिन्ह- यह चिन्ह त्रिभुजाकार होते है, जिसकी पृष्ठभूमि पीली तथा आकृति काले रंग की होती है। इसके माध्यम से चेतावनी दी जाती है कि उक्त स्थान पर किसका खतरा हो सकता है।

 

वैद्युत अघात का संकट

आकृति

त्रिभुजाकार

रंग

काला बार्डर और चित्र के साथ पीली पृष्ठ-भूमि

अर्थ

ऐसे संकट से सावधान रखने के लिए

उदाहरण

आग का संकट, वैद्युत अघात का संकट, इत्यादि

4. सूचनात्मक चिन्ह- यह वर्गाकार आकृति में बने होते हैं जो कि हरे पृष्ठभूमि पर सफेद चिन्ह अथवा सफेद पृष्ठभूमि पर लाल चिन्ह से बनाए जाते है इन चिन्हों द्वारा विभिन्न प्रकार की सुरक्षा सम्बन्धित सूचनाएँ दी जाती है जैसे प्राथमिक उपचार की सुविधा, आपातकालीन दरवाजा आदि

 

प्राथमिक चिकित्सा

आकृति

वर्गाकार अथवा आयताकार

रंग

हरे पृष्ठ-भूमि पर सफेद चिन्ह

अर्थ

सुरक्षा सामग्री की सूचना देने के लिए

उदाहरण

प्राथमिक चिकित्सा इत्यादि

आग(Fire):-

     औद्योगिक सुरक्षा की दृष्टि से आग बहुत ही महत्वपूर्ण कारक है। आग लगने से बहुत ही ज्यादा जान-माल की हानि होती है। किसी पदार्थ में आग लगने के लिए तीन चीजों का होना आवश्यक होता है। 1. ईंधन, 2. ऊष्मा और 3. ऑक्सीजन। इन तीनों कारकों में से किसी भी एक कारक की अनुपस्थिति में आग नहीं लग सकती है या लगी हुई आग बुझ जाती है। अतः आग बुझाने के लिए इन्हीं तीन कारकों में से किसी एक कारक को हटाया जाता है।

आग

कार्यशाला में आग लगने के कारण:-

1. वैद्युतिक शार्ट-सर्किट अथवा स्पार्किंग

2. ज्वलनशील पदार्थों का गलत रख-रखाव।

3. विस्फोटक पदार्थों के उपयोग में लापरवाही।

4. बीड़ी-सिगरेट के अनबुझे टुकड़े

5. ज्वलनशील गैसों की निकासी का उचित व्यवस्था न होना।

6. सर्दियों में आग जलाने के बाद लापरवाही।

आग के प्रकार- दहन होने वाले पदार्थों के आधार पर आग को निम्न श्रेणीयों के अन्तर्गत रखा गया है।

1. श्रेणी ‘A’ अग्नि- इस श्रेणी के अन्तर्गत लकड़ी, कागज, जूट आदि से लगने वाली अग्नि आती है। इस अग्नि को बुझाने के लिए शीतल जल की बौछार या साधारण शुष्क रसायन उपयुक्त होती है।

2. श्रेणी ‘B’ अग्नि- इसके अन्तर्गत ज्वलनशील द्रव जैसे मिट्टी का तेल, डीजल, पेट्रोल, आदि से लगने वाली अग्नि आती है। इन्हें बुझाने के लिए झाग वाले यन्त्र एवं CO2 वाले अग्निशामक यन्त्र प्रयुक्त होते है। इस प्रकार की आग पानी की बौछार की सहायता से नहीं बुझाये जा सकते।

3. श्रेणी ‘C’ अग्नि- इसके अन्तर्गत ज्वलनशील गैसे तथा बिजली से लगने वाली अग्नि आती है। इस अग्नि के कारण विस्फोट होने की सम्भावना बनी रहती है। इस प्रकार की अग्नि को बुझाने के लिए CO2 तथा हेलोन जैसे शुष्क रसायन का उपयोग करना चाहिए।

4. श्रेणी ‘D’ अग्नि- इसके अन्तर्गत दहनशील धात्विक पदार्थ जैसे सोडियम, पोटैशियम, मैग्निशियम आदि से लगने वाली अग्नि आती है। इस अग्नि को बुझाने के लिए CO2, शुष्क चूर्ण, CTC प्रकार के अग्निशामक, शुष्क रेत आदि का उपयोग किया जाता है। इसमें जल अथवा झाग वाले अग्निशामक का उपयोग नहीं करना चाहिए।

अग्निशामक यन्त्र(Fire Extinguishers):- यह एक ऐसा उपकरण है जिसके द्वारा जलती हुई वस्तुओं पर द्रव, गैस या चूर्ण का छिड़काव करके जलती हुयी वस्तु से ऑक्सीजन की सप्लाई को रोक कर आग को बुझाया जाता है। इसके द्वारा छिड़का जाने वाला द्रव, गैस या चूर्ण स्वयं ज्वलनशील नहीं होता और न ही जलने में सहायक होता है।

अग्निशामक यन्त्र

अग्निशामक यन्त्र मुख्ता निम्न प्रकार के होते है-

1. जल युक्त अग्निशामक यन्त्र,   2. फोम टाइप अग्निशामक यन्त्र,   3. शुष्क पाउडर टाइप अग्निशामक यन्त्र,

4. कार्बन-डाई-ऑक्साइड टाइप अग्निशामक यन्त्र, 5. कार्बन टेट्राक्लोराइड टाइप अग्नियशामक यन्त्र

 

 

 


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